अमीर खुसरो
हाँ ग्यास,दिल्ली के इसी डगमगाते तख़्त पर
एक नहीं ग्यारह बादशाहों को
बनाते और उजड़ते देखा है.
ऊब गया हूँ इस शाही खेल तमाशे से
यह 'तुगलकनामा'-बस,अब,और नहीं.
बाकी जिंदगी मुझे जीने दो
सुल्तानों के हुक्म की तरह नहीं-
एक कवि के ख़यालात की तरह आज़ाद,
एक पद्मिनी के सौंदर्य की तरह स्वाभिमानी,
एक देवलरानी के प्यार की तरह मासूम,
एक गोपल्नायक के संगीत की तरह उदात्त,
और एक निज़ामुद्दीन औलिया की तरह पाक.
गयास एक स्वप्न देखता है,"अब्बा जान
उस संगीत में तो आप की जीत हुई थी?"
"नहीं बीटा,हम दोनों हार गए थे.
दरबार जीता था!
मैंने बनाये थे जो कानून
उसमे सिर्फ मेरी ही जीत की गुंजाइश थी.
मैं ही जीतूँ
यह मेरी नहीं आलमपनाह की ख्वाहिश थी...
खुसरो जानता है अपने दिल में
उस दिन भी सुल्तानी आतंक ही जीता था
अपनी महफिल में...!"
भूल जाना मेरे बच्चे कॆ खुसरो दरबारी था.
वह एक ख्वाब था-
जो कभी संगीत,
कभी कविता,
कभी भाषा,
कभी दर्शन से बनता था.
वह एक नृशंस युग की सबसे जटिल पहेली था
जिसे सात बादशाहों ने बुझाने की कोशिश की !
खुसरो एक रहस्य था
जो एक छोटा सा गीत गुनगुनाते हुए
इतिहास की एक बहुत कठिन डगर से गुजर गया था.
-कुंवर नारायण
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