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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

आज महान चित्रकार नंदलाल बसु की पुण्यतिथि है -

आज महान चित्रकार नंदलाल बसु की पुण्यतिथि है -16 अप्रैल २०१३


नंदलाल बोस को भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने का मौका मिला। नंदलाल बोस की मुलाकात पं. नेहरू से शांति निकेतन में हुई और वहीं नेहरू जी ने नंदलाल को इस बात का आमंत्रण दिया कि वे भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाएं। 221 पेज के इस दस्तावेज के हर पन्नों पर तो चित्र बनाना संभव नहीं था। लिहाजा, नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया। नंदलाल बोस के बनाए इन चित्रों का भारतीय संविधान या उसके निर्माण प्रक्रिया से कोई ताल्लुक नहीं है। वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से। अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं। भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है। इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है। वास्तव में भारतीय सभ्यता की पहचान में इस सील का बड़ा ही महत्व है। शायद यही कारण है कि हमारी सभ्यता की इस निशानी को शुरुआत में जगह दी गई है। अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती है। किसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है। मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

कल ८ अप्रैल का दिन भी कम ऐतिहासिक नहीं था.८ अप्रैल,१९२९ को ही भगत सिंह ने ट्रेड डिस्प्यूट बिल पर होने वाली बहस के खिलाफ,जो मजदूरों के हित के विरुद्ध था,नॅशनल असेम्बिली में बम फेंका था.इसका उद्देश्य किसी को आहात करना नहीं,बल्कि भगत सिंह के शब्दों में बहारों को ऊंची आवाज़ में सुनाना था.भगत सिंह का नाम लेने वाले और उनकी विरासत का उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाली सत्ता के साथ गठजोड़ और दलाली करने वाली संसदीय वामपंथी पार्टियों के नुमाइंदों के रहते हुए किसान-मजदूर,जन-विरोधी कानून और प्रस्ताव संसद में पारित हो रहे हैं और हमारे 'क्रांतिवीर' बहरे बनकर उसे पारित करने में सहयोग करते हैं.बहिस्कार और विरोध का कुछ नाटक कर देते हैं ताकि जनता को यह भ्रम हो की क्रांतिवीर लोग इस जन विरोधी कानून की मुखालिफत कर रहे हैं.जब चुनाव आएगा तो साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए फिर ,मजबूरी बताकर कांग्रेस के साथ हो लेंगे.इन जान बूझ कर बहरे बने क्रांतिवीरों को सुनाने के लिए भगत सिंह का वह साहस बरबस याद आता है.भगत सिंह के ये क्रन्तिकारी उत्तराधिकारी उसी संसद,विधान सभा,विधान परिषद्-संसदीय व्यवस्था की शरण में शरणागत होकर क्रांति करना चाहते हैं,जिस पर भगत सिंह ने रत्ती भर भी विश्वास नहीं किया था.
बहारहल,इन पथभ्रष्टों पर बात कर क्यों दुखी हुआ जय!
महँ शहीद भगत सिंह का वह क्रांतिकारी प्रयास और जज्बा अमर रहे और सचमुच की क्रांतिकारी वामपंथी ताकतें उस जज्बे को आत्मसात करते हुए उस दिशा में आगे बढ़ें-यही कमाना है.विश्वास है की यह धारा आगे बढ़ेगी!

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

हमारे समय के सबसे वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण की यह कविता बहुत आकर्षित कराती है-


घर रहेंगे


घर रहेंगे,हम उनमें रह न पाएंगे :
समय होगा,हम अचानक बीत जायेंगे :
अनर्गल जिंदगी धोते किसी दिन हम
एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जायेंगे.

मृत्यु होगी खड़ी सम्मुख राह रोके,
हम जागेंगे यह विविधता,स्वप्न,खो के.
और चलते भीड़ में कंधे रगड़ कर हम
अचानक जा रहे होंगे कहीं सदियों अलग हो के.

प्रकृति औ' पाखंड के ये घने लिपटे
बंटे,ऐंठे तार,-
जिन से कहीं गहरा,कहीं सच्चा,
मैं समझता-प्यार,
मेरी अमरता की नहीं देंगे ये दुहाई,
छीन लेगा इन्हें हम से देह-सा संसार.

रख सी साँझ,बुझे दिन की घिर जाएगी :
वही रोज़ संसृति का अपव्यय दुहारयेगी.