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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

कल ८ अप्रैल का दिन भी कम ऐतिहासिक नहीं था.८ अप्रैल,१९२९ को ही भगत सिंह ने ट्रेड डिस्प्यूट बिल पर होने वाली बहस के खिलाफ,जो मजदूरों के हित के विरुद्ध था,नॅशनल असेम्बिली में बम फेंका था.इसका उद्देश्य किसी को आहात करना नहीं,बल्कि भगत सिंह के शब्दों में बहारों को ऊंची आवाज़ में सुनाना था.भगत सिंह का नाम लेने वाले और उनकी विरासत का उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाली सत्ता के साथ गठजोड़ और दलाली करने वाली संसदीय वामपंथी पार्टियों के नुमाइंदों के रहते हुए किसान-मजदूर,जन-विरोधी कानून और प्रस्ताव संसद में पारित हो रहे हैं और हमारे 'क्रांतिवीर' बहरे बनकर उसे पारित करने में सहयोग करते हैं.बहिस्कार और विरोध का कुछ नाटक कर देते हैं ताकि जनता को यह भ्रम हो की क्रांतिवीर लोग इस जन विरोधी कानून की मुखालिफत कर रहे हैं.जब चुनाव आएगा तो साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए फिर ,मजबूरी बताकर कांग्रेस के साथ हो लेंगे.इन जान बूझ कर बहरे बने क्रांतिवीरों को सुनाने के लिए भगत सिंह का वह साहस बरबस याद आता है.भगत सिंह के ये क्रन्तिकारी उत्तराधिकारी उसी संसद,विधान सभा,विधान परिषद्-संसदीय व्यवस्था की शरण में शरणागत होकर क्रांति करना चाहते हैं,जिस पर भगत सिंह ने रत्ती भर भी विश्वास नहीं किया था.
बहारहल,इन पथभ्रष्टों पर बात कर क्यों दुखी हुआ जय!
महँ शहीद भगत सिंह का वह क्रांतिकारी प्रयास और जज्बा अमर रहे और सचमुच की क्रांतिकारी वामपंथी ताकतें उस जज्बे को आत्मसात करते हुए उस दिशा में आगे बढ़ें-यही कमाना है.विश्वास है की यह धारा आगे बढ़ेगी!

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